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मंझली रानी

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वे मेरे कौन थे ? मैं क्या बताऊँ ? वैसे देखा जाय तो वे मेरे कोई भी न होते थे। होते भी तो कैसे? मैं ब्राह्मण, वे क्षत्रिय; मैं स्त्री, वे पुरुष; फिर न तो रिश्तेदार हो सकते थे और न मित्र । आह ! यह क्या कह डाला मैने ! मित्र ? भला किसी स्त्री का कोई पुरुष भी मित्र हो सकता है ? और यदि हो भी तो क्या इसे समाज बर्दाश्त करेगा ? यहाँ तो किसी पुरुष का किसी स्त्री से मिलना-जुलना या किसी प्रकार का व्यवहार रखना

भी पाप है। और यदि कोई स्त्री किसी पुरुष से किसी‌

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