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बिखरे मोती]
 


की रानी हूँ । मैंने उनकी ओर आखँ उठाकर भी न देखा ।

दूसरे दिन राजा साहेब ने स्वयं पिता जी को बुलावा भेजा और उनसे मिलकर दो-तीन घंटे बाद जब पिता जी लौटे, तो इतने प्रसन्न थे कि उनके पैर धरती पर पड़ते ही न थे। ऐसा मालूम होता था कि वे सारे संसार को जीतकर आ रहे हैं । आते ही उन्होंने मेरी पीठ ठोंकी और वें मां से बोले,—लो, इससे अच्छा और क्या हो सकता था ? तारा का विवाह राजा साहब के मंझले लड़के से तै हो गया ।माता-पिता दोनों ही इस सम्बन्ध से बड़े प्रसन्न हुए ।

[ २ ]

मेरे भाइयों ने जब सुना कि तारा का विवाह, एक तालुकेदार के विलासी लड़के से, जो मामूली हिन्दी पढ़ा- लिखा हे, तै हुआ है, तो उन्होंने इसका बहुत विरोध किया । किन्तु उनके विरोध को कौन सुनता था । पिता जी तो अपनी हठ पकड़े थे, उनकी समझ में इससे अच्छा घर और वर मेरे लिए कहीं मिल ही न सकता था । सबसे अधिक आकर्षक बात तो उनके लिए थी वह कि वर बहुत बड़े खानदान, वीस बिस्वे कनबजियों के घर का लड़का था।

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