[मझली रानी
फिर राजा से रिश्तेदारी करक शास्त्र में उनकी इशत बढ़ न
जायगी क्या ? इसके अतिरिक्त, विवाह का प्रस्ताव भी तो
स्वयं राजा साहब ने ही किया था। नहीं तो भला मामूली
हैसियत के मेरे पिता जी यह प्रस्ताव कैसे ला सकते
थे? सबसे बढ़कर बात तो यह थी कि दहेज के नाम
से कुछ न देकर भी लड़की इतने बड़े घर में व्याही जाती
थी; फिर भला इन बड़े-बड़े आकर्षणों के होते हुए भी
पिता जी इस प्रस्ताय को कैसे टाल देते ?
पिता जी मेरी किस्मत की सराहना करके कहते, मेरी तारा तो रानी बनेगी । रानी बनने की खुशी में मैं फूली- फली फिरती थी। भाइयों का विरोध करना, मुझे अच्छा न लगता, किन्तु मैं उसके सामने कुछ कह न सकती थी। खैर, भाइयों के बहुत विरोध करने पर भी मेरा विवाह मंझले राजा मनमोहन के साथ हो हो गया।
फूलों से सजी हुई मोटर पर बैठकर, मैं ससुराल के लिए रवाना हुई। हमारे कस्बे और ललितपुर के बीच में केवल २७ मील का अन्तर श्रा; इसलिए बरात मोटरों से ही आई और गई थी। जीवन में पहिली ही बार मोटर पर बैठी थी। मुझे ऐसा मालूम होता कि