पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

[ मंझली रानी


सुन्दर नहीं हूँ तो क्या मुझे सुन्दरता की परख भी नहीं है? न जाने कितनी सुन्दरियां देखीं है, यह तो उनके पैरों की धूल के बराबर भी न होगी । मालूम होता है, उमर के साथ-साथ ससुर जी की आँखें भी सठिया गई हैं; मंझले राजा को डुबो दिया ।

बिरजू की माँ उनकी हाँ में हाँ मिलाती हुई बोलीं--- सुन्दर तो है रानी जी ! जैसी आप लोग हैं वैसी ही है; पर अभी बच्चा है; जवान होगी तो रूप और निखर आयेगा।

बड़ी रानी तिलमिला उठी और बोलीं-रूप निस्त्ररेगा पत्थर; ‘होनहार विरवान के होत चीकने पात' । निखरने वाला रूप सामने ही दीखता है। फिर वे जरा विरक्ति के भाव से बोलीं-उँह, जानें भी दो; अच्छा हो या बुरा, हमें करना ही क्या है ? ।

जब मैं वहाँ अकेली रह गई, सब औरतें चली गई, तो मेरी माँ के घर की खवासन ने, सूना कमरा देखकर, मेरा मुँँह खोल दिया । शीशा उठाकर मैंने एक बार अपना मुँह ध्यान से देखा, फिर रख दिया; ढुँढने से भी मुझे अपने रूप-रंग में कोई ऐब न मिला ।

३४