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बिखरे मोती ]


कहीं न जा सकती थीं; उन्हें बड़ी रानी से हुक्म लेना पड़ता था । यदि उधर से स्वीकृति मिल जाती तो मेरा काम होता, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार हर माह मुझे.१५०) खज़ाने से हाथ-खर्च के लिये मिलते थे; किन्तु क्या मजाल कि उसमें से एक पाई भी महाराजा से पूँछे बिना खर्च कर दूँ । भीतर के शासन की बागडोर बड़ी रानी के हाथ में थी, और बाहर की महाराजा मेरे ससुर के हाथ में । मेरे पति मंझले राजा, बड़े ही विलास-प्रिय, मदिरा-सेवी, शिकार के शौकीन और न जाने क्या क्या थे, मैं क्या बताऊँ ? वे बहुत सुन्दर भी थे। किन्तु उनके दर्शन मुझे दुर्लभ थे। चार छः दिन में कभी घंटे, आध घंटे के लिए, वे मेरे कमरे में आ जाते तो मेरा अहो भाग्य समझो । उनकी रूप-माधुरी को एक बार जी-भर के पीने के लिए मेरी आँँखे आज तक प्यासी हैं; किन्तु मेरे जीवन में वह अवसर कभी न आया ।

इस दिखावटी वैभव के अन्दर मैं किसी प्रकार अपने जीवन को घसीटे जा रही थी। इसी समय मेरे अंधकार पूर्ण जीवन में प्रकाश की एक सुनहली किरण का आगमन हुआ ।

छोटे राजा की उमर १७,१८ साल की थी। वे बड़े

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