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[ मंझली रानी


नेक और होनहार युवक थे। घर में पढ़ने-लिखने का शौक केवल उन्हीं को था । छोटे राजा मैट्रिक की तैयारी कर रहे थे, और एक मास्टर बाबू उन्हें पढ़ाया करते थे । घर में आने-जाने की उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता थी । घर में स्त्रियों की आवश्यक वस्तुएँ बाहर से मँगवा देना भी मास्टर बाबू के ही जिम्मे था । इसलिये वे घर में सबसे और भी ज्यादः परिचित थे।

विवाह के बाद से ही बड़ी रानी मुझ में नाराज़, थीं। उन्हें मेरी चाल-ढाल, रहन-सहन जर भी न सुहाती । हर बात में मेरी ऐब हीं ढूंढ निकालने की फिराक़ में रहतीं । तिल का ताड़ बना कर, मेरी जरा-जरा-सी बात को वे परिचित या अपरिचित, जो कोई भी आता उससे कहती । शायद वे मेरी सुन्दरता को मेरे ऐबों से ढंक देना चाहती थीं । वही बात उन्होंने मास्टर बाबू के साथ भी की। वे तो घर में रोज ही आते थे। और रोज उनसे मेरी शिकायत होने लगीं । किन्तु इसका असर ही उल्टा हुआ; मैंने देखा, तिरस्कार की जगह मास्टर बाबू का व्यवहार मेरे प्रति अधिक मधुर और अदर-पूर्ण होने लगा ।

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छोटे राजा को मेरा गाना बहुत अच्छा लगता; वे बहुधा

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