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बिखरे मोती ]
एक सांस में इतनी सब बातें कहके बड़ी रानी चली गई।
मैने सोचा, शराब पीकर रंडियों की बांह में बांह डाल
कर टहलने में नाक नहीं कटती । गरीवों पर मनमाने
जुल्म करने पर नाक नहीं करती। नाक कटती है मेरे
गाने से, सो अब मैं बाजे को कभी हाथ ही न लगाऊँगी।
उस दिन से फिर मैंने वाजे को कभी नहीं छुआ; और
न छोटे राजा ने ही कभी मुझसे गाने का आग्रह किया।
यदि वे आग्रह करते, तब भी मुझ में बाजा छूने का साहस
न था।
इस घटना के कई दिन बाद एक दिन मास्टर बाबू
छोटे राजा को पढ़ा कर ऊपर से नीचे उतर रहे थे, और
मैं नीचे से ऊपर जा रही थी । आखिरी सीढ़ी पर ही मेरी
उनसे भेंट हो गई; वे ठिठक गये, बोले-
'कैसी हो मंझली रानी ?'
'जीती हूँ।'
'खुश रहा करो; इस प्रकार रहने से आखिर
कुछ लाभ ?'
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