पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

बिखरे मोती ]

एक सांस में इतनी सब बातें कहके बड़ी रानी चली गई।


मैने सोचा, शराब पीकर रंडियों की बांह में बांह डाल कर टहलने में नाक नहीं कटती । गरीवों पर मनमाने जुल्म करने पर नाक नहीं करती। नाक कटती है मेरे गाने से, सो अब मैं बाजे को कभी हाथ ही न लगाऊँगी। उस दिन से फिर मैंने वाजे को कभी नहीं छुआ; और न छोटे राजा ने ही कभी मुझसे गाने का आग्रह किया। यदि वे आग्रह करते, तब भी मुझ में बाजा छूने का साहस न था।


इस घटना के कई दिन बाद एक दिन मास्टर बाबू छोटे राजा को पढ़ा कर ऊपर से नीचे उतर रहे थे, और मैं नीचे से ऊपर जा रही थी । आखिरी सीढ़ी पर ही मेरी उनसे भेंट हो गई; वे ठिठक गये, बोले-


'कैसी हो मंझली रानी ?'


'जीती हूँ।'


'खुश रहा करो; इस प्रकार रहने से आखिर कुछ लाभ ?'

४१