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[ मंझली रानी
'जी को कैसे समझाऊँ, मास्टर बाबू ?'
‘अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ा करो; उनसे अच्छा साथी संसार में तुम्हें कोई न मिलेगा।'
‘पर मैं अच्छी-अच्छी पुस्तकें लाऊ कहाँ से ?'
'लाने का जिम्मा मेरा !'
'यदि आप अच्छी पुस्तकें ला दिया करें तो इससे अच्छी और बात ही क्या हो सकती है ?'
'यह कौन बड़ी बात है मंझली रानी ! मेरे पास बहुत-सी पुस्तकें रखी हैं। उनमें से कुछ मैं तुम्हें ला दूँँगा।'
इस कृपा के लिये उन्हें धन्यवाद देती हुई मैं ऊपर
चली और वे बाहर चले गये। मैंने ऊपर आँख उठा
कर देखा तो बड़ी रानी खड़ी हुई, तीव्र दृष्टि से मेरी ओर देख रही थीं। मै कुछ भी न बोलकर नीची निगाह किए हुए अपने कमरे में चली गई।
[ ५ ]
दूसरे दिन मास्टर बाबू समय से कुछ पहले ही आए। उनके हाथ में कुछ पुस्तकें थीं । वे छोटे राजा के कमरे में न जाकर सीधे मेरे कमरे में आए;
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