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बिखरे मोती ]


और बाहर से ही आवाज दी; किन्तु दोनों दासियों में से इस समय एक भी हाजिर न थी। इसलिये मैंने ही उनसे कहा--आइए मास्टर बाबू ! वे आकर बैठ गये । किताबों और लेखक के नाम बतला कर वे मुझे किताबें देने लगे।ये महात्मा गांधी की 'आत्मकथा' के दोनों भाग हैं। यह है बाबू प्रेमचन्द्र जी की 'रंग-भूमि'; इसके भी दो भाग हैं। यह मैथली बाबू का'साकेत' और यह पंत जी का 'पल्लव’। इसके अतिरिक्त और भी बहुत- सी पुस्तकें हैं। इन्हें तुम पढ़ लोगी, तब मैं तुम्हें और ला दूंँगा ।

इसके बाद वे 'साकेत' उठाकर, उर्मिला से लक्ष्मण की बिदी का जो सुन्दर चित्र मैथली बाबू ने अंकित किया है, मुझे पढ़ कर सुनाने लगे । इतने ही में मुझे वहाँ बड़ी रानी की झलक दीख पड़ी और उसके साथ मेरे कमरे के दोनों दरवाजे फटाफट बन्द हो गये । मास्टर बाबू ने एक बार मेरी तरफ़ फिर, दरवाजे की तरफ देखा; फिर वे बोले- भाई, यह दरवाजा किसने बन्द कर दिया है ? खोल दी ।

जब कोई भी उत्तर न मिला तो मुझे क्रोध आ गया ।

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