[ मंझली रानी
मैने तीव्र स्वर में कहा-यह दरवाजा किसने बन्द किया
है ? खोलो; क्या, मालूम नहीं है कि हम लोग भीतर बैठे है ।
‘बड़ी रानी की कर्कश आवाज़ सुनाई दी-'ठहरो, अभी
खोल दिया जायगा । तुम लोग भीतर हो, यह दिखाने
के लिए तो दरवाजा बन्द किया गया है। पर देखने
वाले भी तो जरा आ जाँय | यह नारकीय लीला
अब ज्यादः दिन न चल सकेगी ।
‘नारकीय लीला' ! मेरा माथा ठनका, हे भगवान! क्या पुस्तक पढ़ना भी 'नारकीय लीला है ? इस प्रकार लगभग १५ मिनट हम लोग बन्द रहे। गुस्से में मास्टर बाबू का चेहरा लाल हो रहा था । उधर बाहर बड़े राजा,मंझले राजा और महाराजा जी की आवाज़ मुझे सुनाई दी; और उसके साथ ही कमरे का दरवाजा खुल गया ।
बड़ी रानी बोली--मेरी बातों पर तो कोई विश्वास ही
नहीं करता था। अब अपनी अपनी आँँखो देखो।
आखें धोखा तो नहीं खा रही हैं ?
आज तक मैने मंझले राजा की विलासी मूर्ति देखी