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[ मंझली रानी


क्यों नहीं देते ? तुम्हारे सामने ही खडा़-खडा़ जवान लड़ा रहा है, और तुम सुन रहे हो;पहले ही कहा था कि नौकर-चाकर की ज्यादः मुँह न लगाया करो ।


महाराज बड़े गुस्से से बोले–किरण कुमार चले जाओ।


इसी समय न जाने कहाँ से छोटे राजा आपढ़े और मास्टर बाबू को जबरदस्ती पकड़कर अपने साथ लिवा ले गये। वे चले गये। मुझपर क्या बीती होगी, कहने की आवश्यकता नहीं, समझ लेने की बात है। नतीजा सब का यह हुआ कि उसी दिन एक चिट्ठी के साथ सदा के लिये में विदा कर दी गई । एक इक्के पर बैठाला कर चपरासी मुझे मां के घर पहुँचाने गया । चिट्टी मेरे पिता जी के नाम थी, जिसमें लिखा था कि " आपकी पुत्री भ्रष्टा है। इसने हमारे कुल में दाग लगा दिया है। इसके लिए अब हमारे घर में जगह नहीं है।" बात की बात में सारे मुहल्ले भर में मेरे भ्रष्टाचरण की बात फैल गई। यहाँ तक कि मेरे पिता के घर पहुँचने से पहले ही यह बात पिता जी के घर तक भी पहुँच गई थी।

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