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[ मंझली रानी

मेरे भ्रष्ट्राचरण की बात सुनी और घृणा में मुँँह विच- काया। एक बोला 'नहीं भाई, अब तो वह घर में रखने लायक नहीं । जब ससुरालवालो ने ही निकाल दिया तो क्या पंडित रामभजन अपने घर रख कर जात में अपना हुक्का-पानी बन्द करवायेंगे।' दुसरे ने पिता जी पर पानी चढाया 'अरे भाई! घर में रक्खें तो रहने दो, उनकी लड़की है; पर हम तो पंडित जी के दरवाजे पर पैर न देंगे।'

मै फिर एक बार भीतर जाने के लिए दरवाजे की तरफ झुकी; किन्तु पिता जी ने एक झटके के साथ मुझे दरवाजे से कई हाथ दूर फेंक दिया। कुल में दाग तो मैने लगा ही दिया था, वे मुझे घर में रख कर क्या जात बाहर भी हो जाते ? मैं दूर जा गिरी और गिर कर बेहोश हो गई । मुझे जब होश आया तब मेरे घर का दरवाजा बन्द हो चुका था, और मुहल्ले भर में सन्नाटा छाया था। केवल कभी-कभी एक-दो कुत्तों के भूकने का शब्द सुन पड़ता था। मैं उठी; बहुत कुछ सोचने के बाद स्टेशन की तरफ चली। एक कुत्ता भूँँक उठा, जैसे कह रहा हो कि अब इस मुहल्ले में तुम्हारे लिये जगह नहीं है। जब मैं स्टेशन पहुँची एक गाड़ी तैयार खडी़

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