पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/६९

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मझली रानी ]


एक दिन इसी प्रकार शाम को जब हम दिन भर की भिझा-वृत्ति के बाद लौट रहे थे तब एक वग्घी निकलीं जिसमें कुछ स्त्रियाँ थीं। बुढ़िया एक पैसे के लिए हाथ फैलाकर गाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ी। कुछ देर के बाद गाड़ी के अन्दर से एक पैसा फेंका गया । शाम के धुँँधले प्रकाश में बुढ़िया जल्दी पैसा न देख सकी; वह पैसा देखने के लिए कुछ देर तक झुकी रही। उसी समय, एक मोटर पीछे से और एक सामने से आ गई। बुढ़िया ने बहुत बचना चाहा, मोटर वाले ने भी बहुत बचाया, पर बुढ़िया मोटर की चपेट में आही गई; उसे गहरी चोट लगी और उसे बचाने की चेष्टा में, मुझे भी काफी चोट आई । जिस मोटर की चपेट हम लोगों को लगी थी, उस मोटर वाले ने पीछे मुड़़कर देखा भी नहीं, किन्तु दूसरी मोटरवाले रुक गये । उसमें से दो व्यक्ति उतरे। मेरे मुँह से सहसा एक चीख निकल गई

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कई दिनों तक लगातार बुखार के बाद जिस दिन मुझे होश आया, मैंने अपने आपके एक ज़नाने अस्पताल के परदावार्ड के कमरे में पाया। एक खाट पर मैं पड़ी थी,

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