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बिखरे मोती ]


मेरे पास ही दूसरी खाट पर भिखारिणी भी मरणासन्न अवस्था में पड़ी थी। मैं खाट से उठकर बैठने लगी, मास्टर बाबु पास ही कुर्सी पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे। मुझे उठते देखकर पास आकर बोले, अभी आप न उठें। बिना डाँँक्टर की अनुमति के आपको खाट पर से नहीं उठना है"।

'क्यों ? मैं पथ की भिखारिणी, मुझे ये साफ-सुथरे कपड़े, ये नरम-नरम बिछौने क्यों चाहिये ? कल से तो मुझे फिर वही गली-गली की ठोकर खानी पड़ेगी न’ ?

उनकी बड़ी-बड़ी आँखें सजल हो गईं। वे बड़े ही करुणा स्वर में बोले–मँझली रानी ! क्या तुम मुझे क्षमा न करोगी ? तुम्हारा अपराधी तो मैं ही हूँ न ? मेरे ही कारण तो आज तुम राजरानी से पथ की भिखारिणी वन गई हो।

जब मुझे उन्होंने 'मंँझली रानी' कह कर बुलाया तो मैं चौंक-सी पड़ी। सहसा मेरे मुँह से निकल गया "मास्टर बाबू !”

×××

दो तीन दिन में मैं पूर्ण स्वस्थ हो गई। परन्तु भिखा-

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