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बिखरे मोती ]
 

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ठाकुर खेतसिंह बड़े भारी इलाक़ेदार थे, सोलह हजार सालाना सरकारी लगान देते थे। दरवाजे पर हाथी झूमा करता ! घोड़े, गाड़ी, मोटर, और भी न जाने क्या-क्या उनके पास था | दो संतरी किरच बाँधे चौबिसों घंटे फाटक पर बने रहते । जब बाहर निकलते सदा दस-बीस लठैत जवान साथ होते। उस इलाके में न जाने कितने बैठे-बैठे मुक्त खा रहे थे और न जाने कितने मटियामेट हो रहे थे। पर इस पर टीका-टिप्णीं कर के कौन आफ़त मोल ले?ठाकुर साहब का आतंक इलाके भर में छाया हुआ था। उनकी नादिरशाही को कौन नहीं जानता था ? किसी की सुन्दर बहू-बेटी ठाकुर साहब के नज़र तले पड़ भर जाय और उनकी तबीयत आ जाय, तो फिर चाहे आकाश- पाताल एक ही क्यों न करना पड़े, किसी न किसी तरह वह ठाकुर साहब के जनानखाने में पहुँच ही जाती थी। स्टेशन पर भी उनके गुंंडे लगे रहते, जो सदा इस बात की टोह में रहते कि कोई सुन्दरी स्त्री यहाँ पर आजाय तो वह किसी प्रकार बहकाकर, धोखा देकर ठाकुर साहब के जनानखाने में दाखिल कर दी जाय। इसके

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