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को हेतसिंह के जेल जाने से बढ़ा कष्ट हो ही रहा था। वह
इस विषय में ठाकुर साहब से कुछ पूछना चाहती थी ।
चम्पा के निडर स्वभाव और उसकी स्पष्ट-वादिता से ठाकुर साहब अच्छी तरह परिचित थे। पहिले तो वे चम्पा के सामने जाने में कुछ झिझके फिर आखिर में उन्हें जाना ही पड़ा । न जाने क्यों वे चम्पा का लिहाज़ भी करते थे । साधारण कुशल प्रश्न के पश्चात् चम्पा ने उनसे हेतसिंह के विषय में पूँछा । ठाकुर साहब ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा-"क्या करें भूल तो ही हो गई ।”
"दादा, अब अप इन आदतों को छोड़ दें तो अच्छा हो ।”
कुछ अनभिज्ञता प्रकट करते हुए ठाकुर साहब बोले-कौन सी आदतें बेटी!
चम्पा ने मार्मिक दृष्टि से उनकी ओर देखा और
चुप हो गई। ठाकुर साहब कुछ झेंप से गए बोले-
बेटी ! मै कुछ नहीं करता, तुझे विश्वास न हो तो
चल कर एक बार अपनी आँखों से देख ले । वैसे तो
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