पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/८७

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[ दृष्टिकोण
 

कोई उसके साथ बुराई भी करने आता तो निर्मला यही सोचती, कदाचित उद्देश्य बुरा न रहा हो; भूल से ही उसने ऐसा किया हो।

पतितों के लिए भी उसका हृदय उदार और क्षमा का भंडार था। यदि वह कभी किसी को कोई अनुचित काम करते देखती, तो भी वह उसका अपमान या तिरस्कार कभी न करती । प्रत्युत मधुरतर व्यवहारों से ही वह उन्हें समझाने और उनकी भूलो को उन्हें समझा देन का प्रयत्न करती । कठोर व़चन कह के किसी का जी दुखाना निर्मला ने सीखा ही न था । किन्तु इसके साथ ही साथ, जितना वह नम्र, सुशील और दयालु थीं उतनी ही वह आत्माभिमाननी, दृढ़निश्चयी और न्यायप्रिय भी थी। नौकर-चाकरों के प्रति भी निर्मला की व्यवहार बहुत दया-पूर्ण होता है । एक बार की बात है,उसके घर की एक कहारिन ने तेल चुराकर एक पत्थर की आढ़ में रख दिया था। उसकी नीयत यह थी कि घर जाते समय वह बाहर के बाहर ही चुपचाप लेती चली जायगी । किसी कार्यवश रमाकान्त जी उसी समय वहाँ पहुँच गए;तेल पर उनकी दृष्टि पढ़ी; पत्नी को पुकारकर पूछा- "निर्मला यहाँ तेल किसने रखा हैं ?”

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