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बिखरे मोती ]
 

निर्मला ने पास ही खड़ी हुई कहारिन की ओर देखा; उसके चेहरे की रंगत स्पष्ट बतला रही थी कि यह काम उसी का है। किन्तु निर्मला ने पति को जवाब दिया-

“मैंने ही रख दिया होगा, उठाने की याद में रही होगी ?"

पति के जाने के बाद निर्मला ने कटोरे में जितना तेल था उतना ही और डालकर कहारिन को दे दिया और बोली-"जब जिस चीज की जरूरत पड़े, मांग लिया करो, मैने कभी देने से इन्कार तो नहीं किया ?”

जो प्रभाव, कदाचित् डांट-फटकार से भी न पड़ती , वह निर्मला के इस मधुर और दयाभूर्ण वर्ताव से पड़ा।

बाबू रमाकान्त जी का स्वभाव इसके बिल्कुल विपरीत था । थे तो वे डबल एम० ए०, एक कालेज के प्रोफ़ेसर, साहित्य-सेवी और देशभक्त, उज्वल चरित्र के नेक और उदार सज्जन पर फिर भी पति-पत्नी के स्वभाव में बहुत विभिन्नता थी। कोई चाहे सच्चे हृदय से भी उनकी भलाई करने आता तो भी उसमें उन्हें कुछ न कुछ बुराई जरूर देख पड़ती । वे सोचते इसकी तह में अवश्य ही कुछ न कुछ भेद है । कुछ न कुछ स्वार्थ होगा।'

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