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बिखरे मोती ]
 



उसे कष्ट भी होता किन्तु वह उसे प्रकट न होने देती । वह सदा प्रसन्न रहती, यहाँ तक कि उसके चेहरे पर शिकन तक न आती। वह स्वयं किसी की बुराई न करना चाहती थी; उसके विरुद्ध चाहे कोई कुछ भी करता रहे ।

[ ३ ]

एक दिन कालेज से लौटते ही रमाकान्त ने कहा-

“आज एक बड़ा विचित्र किस्सा हो गया, निर्मला !"

“क्या हुआ"? निर्मला ने उत्सुकता से पूछा ।

घृणा का भाव प्रकट करते हुए रमाकान्त बोले-“हुआ क्या ? यहीं कि तुम्हारी विट्टन को न जाने किससे गर्भ रह गया है । और अब चार-पांच महीने का हैं । बात खुलते ही आज वह घर से निकाल दी गई है। उसके मायके में तो कदाचित् कोई है ही नहीं । सड़क पर बैठी रो रही है।"

विट्टन बाल-विधवा थी । वह जन्म ही की दुखिया थी, इस लिए निर्मला सदा उससे प्रेम और आदर का व्यवहार करती थी । बिट्टन की करुणा जनक अवस्था से निर्मला कातर हो उठी। उसने रमाकान्त जी से

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