पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/९३

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[ दृष्टिकोण
 


पूछा-“फिर उसका क्या होगा ? अब वह कहाँ जायगी ?”

रमाकान्त जी ने उपेक्षा से कहा “कहाँ जायगी में क्या जानूँ, जैसा किया है वैसा भोगेगी ।"

निर्मला के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई। कुछ देर बाद न जाने क्या सोचकर वह दृढ़ स्वर में बोली-

"तो मैं जाती हूँ;उसे लिया लाती हूँ; जब तक कोई दूसरा प्रबन्ध न हो जायेगा, वह मेरे साथ रही आवेगी ।”

घबरा कर रमाकान्त बोले-"नहीं नहीं, ऐसी बेवकूफ़ी करना भी मत उसे अपने घर लाकर क्या अपनी बदनामी करवानी है ? तुम्हें तो कोई कुछ न कहेगा, सब लोग मुझे ही बदनाम करेंगे।"

निर्मला ने दयाई भाव से कहा-अरे ! तो इतनी छोटी- छोटी सी बातों से क्यों डरते हो ? किसी की भलाई करने में भी लोग बदनाम करेंगे तो करने दे । परमात्मा तो हमारे हृदय को पहिचानेगा । मुझे तो उसकी अवस्था पर बड़ी दया आती है। तुम कहो तो मैं अभी जाकर उसे'लिवालाऊँ ।

रमाकान्त के कुछ बोलने के पहिले ही उनकी माँ बोल

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