कोई हानि तो न होगी ! और कौन वह हमारे चूल्हे
चौके में जायेगी ? आखिर विचारी स्त्री ही तो है। भूलें
किससे नहीं होती है?"
अम्मा जी क्रोध में आकर बोलीं- "एक बार कह दिया कि उस राँड को घर में न घुसने दुंगी। बार बार ज़वान चलाए ही जा रही है। वह तो अपनी कोई नहीं है। कोई अपनी सगी भी ऐसा करती तो मैं लात मार कर निकाल देती । अब बार बार पूँछ कर मेरे गुस्से को,न बढ़ा, नहीं तो अच्छा न होगा।
निर्मला ने नम्रता से कहा-"पर तुम्हारा क्या बिगाडेगी, अम्मा जी ? मेरे कमरे में पड़ी रहेगी और तुम चाहो तो ऐसा प्रबन्ध कर दूं कि तुम्हें इसकी सूरत भी न दिखे। और फिर अभी से उस पर इतनी बहस ही क्यों ? वह तो तब की बात है जब वह हमसे आश्रय माँगने आवे ।”
अम्मा जी का क्रोध बढ़ा और वे कहने लगीं-“तेरे
कमरे में रहेंगी और मुझे उसकी सुरत न दिखेगी
तो क्या दूसरी बात हो जायगी ! कैसी उलट-फेर के
बात कहती है! तुझे अपने पढ़ने लिखने का घमंड हो