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बिखरे मोती ]
 


तो उस घमंड में न भूली रहना । ऐसी पढ़ी-लिंखियों को मैं कौड़ी के मोल के बराबर भी नहीं समझती । धर्म-कर्म से तो सदा सौ गज़ दूर, और ऐसी कुजात औरतों पर दया करके चली है धर्म कमाने । वाह री औरत ! जिसे मुहल्ले भर में किसी ने अपने घर न रक्खा ; उसे यह अपने घर में रखेगी । तू ही तो दुनिया भर में अनोखी हैं न ? सब दूसरों को दिखाने के लिए कि बड़ी दयावन्ती है ? जो भीतर का हाल न जाने उसके सामने इतनी बन । घर वालों को तो काटने दौड़ेगी और बाहर वालों को गले लगाती फिरेगी।

निर्मला भी जरा तेज़ होकर बोली-“तो अम्मा जी मुझे इतनी खरी-खोटी क्यों...............?” बीच ही में निर्मला को डाँट कर चुप कराते हुए रमाकान्त बोले- तो तुम चुप न रहोगी निर्मला ? कब से सुन रहा हूँ कि ज़वान कैसी कैची की तरह चल रही हैं । तुम्हारे हृदय में बिट्टन के लिए बड़ी दया है, और तुम उसके लिए मरी जाती हो; तो जाओ उसे लेकर किसी धर्मशाले में रहो । मेरे घर में तो उसके लिए जगह नहीं है।"

निर्मला को भी अब क्रोध आ चुका था; उसने भी

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