उसी प्रकार तेज स्वर में कहा-“तो क्या इस घर में मेरा इतना भी अधिकार नहीं है कि यदि मैं चाहूँ तो किसी को एक दो दिन के लिए भी ठहरा सकूँ ? अभी उस दिन, तुम लोगों ने बाबू राधेलाल जी का इतना आदर सम्मान क्यों किया था ? उनके चरित्र के बारे में कौन नहीं जानता? उनके घर ही में तो वेश्या रहती है; सो भी मुसलमानिनी और वह उसके हाथ का खाते-पीते भी हैं। फिर बिचारी बिट्टन ने क्या इससे भी ज्यादा कुछ अपराध किया है ?”
अम्मा जी गरज उठीं; अब उनका और बढ़ गया।
था; क्योंकि अभी-अभी रमाकान्त जी निर्मला को डांट
चुके थे। वे बोली-“चुप रह नहीं तो जीभ पकड़ कर
खींच लूँगी । बड़ी विट्टन वाली बनी है। विचारी विट्टन,
विचारी विट्टन। तू भी विट्टन सरीखी होगी, तभी तो उसके लिए मरी जाती है, न ? जो सती होती हैं वे तो ऐसी औरतों की परछाई भी नहीं छूती । और तू राधेलाल के लिए क्या कहा करती है वह, तो फूल पर का भंवरा हैं। आदमी की जात है, उसे सब शोभा देता है, एक नहीं बीस औरतें रख ले पर औरत आदमी की बराबरी कैसे कर सकती है ?