पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/९९

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[ दृष्टिकोण
 

इच्छा का भी तो कोई मूल्य होना चाहिए; या मेरी इच्छा सदा ही आपकी इच्छा के सामने कुचली जाया करेगी ।

अब रमाकान्त जी अपने क्रोध को न सम्हाल सके और पत्नी के मुँह पर तीन-चार तमाचे तड़ातड़ जड़ दिए । निर्मला की जवान बन्द हो गई। बाबू रमाकान्त क्रोध और ग्लानि के मारे कमरे में जाकर अन्दर से सांकल लगा कर सो रहे । अम्मा जी दरवाजे पर रखवाली के लिए बैठ गई कि कहीं विट्टन किसी दरवाजे से भीतर न आ जाय ।

[ ४ ]

इस घटना के लगभग एक घंटे बाद, विट्टन को जब कहीं भी आश्रय न मिला, तब उसने एक बार निर्मला के पास भी जाकर भाग्य की परीक्षा करनी चाही। दरवाजे पर ही उसे अम्मा जी मिलीं । विट्टन को देखते ही वे कड़ी ललकार के साथ बोली -"कौन है ? विट्टन ! दूर !उधर ही रहना,खबरदार जो कही देहली के भीतर पैररक्खा तो !” विट्टन बाहर ही रुक गई। निर्मला पास पहुँच कर शान्त और कोमल स्वर में यह कहती हुई कि-"बिट्टन! बाहर ही बैठो बहिन; मैं वहीं तुम्हारे पास आती हूँ,

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