पृष्ठ:बिरजा.djvu/६

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पावेंगे, यदि आज्ञा हो तो उस पार जाकर नौका खड़ी कर दें"। बाबू ने कहा "पार चलने का अब समय नहीं है पार चलते २ बीच मेंही जल झड़ आय कर गिर सकती है इससे इस पारही नौका ठहरा दो"। नौका में एक मनुष्य पूर्व बङ्गाल अञ्चल का मुसलमान था। वह बाबू की बात से विरक्त होकर कहने लगा कि "इस पार क्या जान खुवाने के लिये नाव ठहराओगे? अल्लाह वेली है उस पार नाव ले चलो जो नसीब में होगा आप से आप हो रहैगा" इसकी बात सुनकर बाबू को क्रोध आया और कहने लगे कि "मांझी! इसकी बात मत सुनो क्योंकि नौका डूबने से इनलोगों को तो कुछ भय हैही नहीं यह लोग तो जल जन्तु होते हैं'। बसरुद्दीन, बाबू की बात सुनकर बड़े क्रोध से कहने लगा "बाबू! बात कहो गाली क्यों देते हो? और जो मैं कुसूर करूँ मुझे गाली दो देश के लोगों को क्यों गाली देते हो? हमें गाली दो हम सह सकते हैं, देश के लोगों को गाली देने से हमारे दिल में चोट लगती है"।

मांझी ने बसरुद्दीन को दो एक मिन्ट भर्त्सना करके चुप किया। अनन्तर बाबू से कहा कि "बाबू पूर्व में पवन है, देखते देखते पार पहुँच जायँगे डर नहीं है"। मांझी आप डरता था तथापि बाबू से कहा कि "डर नहीं है"। मनुष्य का यह स्वभावही है कि आप विषद सागर में गिर कर और से कहता है कि "डर नहीं है"।