पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०

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के मंदिरमें गया और अपने दोहेके पलट में लिखाहुादोहापढ़ औरउसके बदलेमें यहगाथानीचेलिखचला गया(गाथा)कूताकि अंग पुकारं । जौनराम अवधेश पुकारााबिछुरंदर्द अपारं।सहि जानत माधवबिरही।।अन्य दिवस राजा प्रातःकाल शौच आदि नित्य क्रिया कर मंदिर को पधारे और गाथा पढ़ने के पश्चात् अपने बलकी बीरता लिखचले आये और अपनी सभा में जाय राज्य सिंहासन पर विराजमान हुए और मंत्री तथा दरबार के सब सभासदों के आगे मंदिरका सम्पूर्ण वृत्तान्त वर्णन किया और यह प्रतिज्ञा की कि॥ दो गाजलता राज्य में मुखताको जरिजाय । बिरही दुखदारे बिना अन्नपान जो खाय ।। ऐसाकठिन प्रण राजाने टान सब राज्य भरमें डौंडी पिटवाई परंतुबिरही नरकाशोधकहीं न मिला तिस पश्चात सजा सभामें बीरारखे बोला कि जोकोईउसबिरही नलको खोजिकर इंदलावेगा मैं उसेबसपारितोषिकदमा उसीसमय एकवारबधने बीराउठाया और राजाकेसन्मुख हाथजोड बोली कि महाराज में विहीनरका खोजकरलाऊमीयहकह राजासेविदामांग अपनेगृहकोगई और सोरह शृंगार बारह आभूषण धारण कर बीणा बजाती भैरवीरा ग का अलान करती हुई मंदिरके समीपहोजा निकली जिसका शब्द सुन माधवानल उसके समीप पाया और गौरी राग के- समय भैरवी गाते हुये सुनि मनमें कंदला का धोखा खा मूर्छि त हो पृथ्वी पर गिर कंदला २ पुकारने लगा उसी समय बार- बधू को निश्चय हुआ कि हो न हो यही वियोगी है तब हाथ पकड़ उसे उठायं हृदयसे लगाय उसका सब वृत्तांत सुनि वहां से विदाहो राजाके समीप आ इस प्रकार बोली कि महाराज वह वियोगी महाकालेश्वर के मंदिरमें ठहरा है यह सुनि राजाने रथ भेजी माधवानल को बुलवाया जिसपर चढ़ माधवानल- राजाकी सभामें पाया माधवानलको देख राजाने सिंहासन से