पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०९

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । तितदरद सनेह मिलत नित्र ॥ अब हौन रहीं प्रिय नगरयेह । क्षिति पालकरत मोहिं चाहितेह ॥ आउंविशेष बीते बसंत । सु- ख करौ भूप पदिप्रेम मंत्र॥ (गुलजार बचन) दो० जो अकाज यह राजतें तोनहिं रोकों तोहिं । सुनु माधौ जित जाय तूं तितै लेचले मोहिं ।। (माधोबचन) मेरे तेरे मिलन में अंतर कबहूं नाहि । तू मेरे जियमें बसत जिय मेरे हिय माहि ॥ चौ हियेलागि मिललोपियमेरे।अबफिरमिलनहाथ विधिकेरे।। खिलवत खुशी दोस्ती लेखे । वे दिन बहर न वह रतदेखे ॥ (बिरही) स० बोधा सुभान हितू सों कह झिरावाकगार के फेर झिरे ना। फेरना फूली निवारी उतै उननारिनसे फिरिकै अभिरैना। फेरना ऊसी भई अकती कवहूं उहिबागकेफेर फिरैना। खोरन खे- लबो संग सखीनके वे दिन भावदी फेर फिरैना ॥ (गाथा) यारा मिलन बहारं । बिछुरदनहिं पुनह सनहीं। बिछुरन दरदअपारं । सहनाति प्रिय बिछुरते ॥ चौ० माधो कह मित्त सों येही । अबजिनचिन्ता करहु सनेही।। बीते चैत मास फिरि आऊँ । कामसैन भूपतिहि रिझाऊं ॥ तूमति यादबिसारै मेरी । तेरेहितफिरि करिहौंफेरी ॥ याकहि मिले प्रेम भरि दोऊ । सुन सुभान बिछुरै नहिं कोऊ ॥ दृगभरि दीह उसासन लेहीं । मुरकि २ हियसोहिय देहीं । करि प्रणाम गुलजार पधारयो । दै असीस माधवा सिधास्यो। दो० पौष पंचमी कृष्ण पक्ष भजराधे घनश्याम । त्यागपुरी कामावती माधो चल्यो विराम ।। जगी कंदला रविउदै लगी निहारनसेज। । ११