पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११

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उठप्रणाम किया और माधवानल ने भी आशीर्वाद दिया और राजासे यथोचित सन्मान पाय स्थितहुश्रा इसके उपरांत राजाने नाम गांव इत्यादि पूंछ पानेका कारण पूंछा तब माधवानलने अपना आद्योपांत वृत्तांत सब वर्णन करदिया तिसको सुन नृ- पति ने बहुप्रकार माधवा को समझाया पर उसके मन में एक न भाया अंतमें राजा बोला फिर दिज देव हमारे राज्य भर में अ- थवा रनिघासमें जो सुकुमारी तेरेचित्तमें चुभै मांग ले और इस के सिवाय मैं ग्वालियर का राज्य भी समर्पित करूंगा उसे ले. सुख भोग कर परन्तु माधव ने कुछ स्वीकार न किया निदान- माधक के ऐसेबचन सुन राजा क्रोधितहो सेनापति को सेनास- जने की आज्ञादी और ज्योतिषियोंसे शुभदिन पूंछ कामावती- नगरीका पयानकिया और कुछ दिवसमार्ग में व्यतीतकर कामाव तीके निकट मदनावती के बागमें डेरा करता भया पश्चात् का मकंदला के प्रीति की परीक्षा लेने के हेतु आपने बैद्य रूपधारण कर कामावती नगरीकी राहली और जब राजा के अवासके स- मीप कामकंदला के द्वारेपर पहुंचे तब बैद्योंकी भांति पुकार क- रने लगे उसशब्द को सुनि कामकंदला की दासी भीतरसे बा- हरनिकल आई और उस वैद्यराज को पुकार जहां कंदला बिरह बेदनासे ग्रसित पर्यकपर पौढ़ी थी वहां लेगई और कामकंद- ला भली भांति आसनदे चिकित्सा तथा बिरह विथा का हाल पूंछने लगी वैद्य ने उसकी नाड़ीकी परीक्षा ले रोगोंके लक्षणों का वर्णन किया परन्तु उसको इसरोगोंमें लेशमात्र भी ग्रसितन पाया और कहने लगा कि मुझे ऐसा निश्चय होता है कि हो न हो बिरह विथाही के कारण तुम्हारी यह दशा हुई है तबका मकंदला की सखी बोली कि महाराज आपने इनके रोग की ठीक परीक्षा की इनके इसरोगमें प्रसित होने का यह हेतु है कि कुछ दिनहुए कि इसनगरी में एक माधवानाम का ब्राह्मण आ- याथा कि जिसकी प्रीति के कारण यह कंदला ऐसी बिरही अक्-