पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२०

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। डु योगहु एक ॥ हकीमन की न चलै मन साह । लखै तिय देह अपूरब दाह॥ सो० माधौनल तुवनाम दीपक रागसमान तिन । जगत दिया लौ बाम इहि सँयोग जीवतरहत ।। चौ० सुनकोविप्रविरह रसमोयो । विधिकी बुद्धि मंदपर रोयो॥ जो महेश विधि यही बिचारी । नये नेह विछुरै सुकुमारी ।। तो कतनाद बेद मोहिं दीन्हा । वृषभ समान मूढकिन कीन्हा॥ मूरखनरनन व्यापै यारी । खर शूकर लौं रति आधिकारी ॥ सो. बिछुरे दरद न होत खरशूकर कूकरनको। हंस मयूरकपोत सुघरनरन बिछुरनकठिन ।। मोसम अधम न आन प्राण प्रिया बिछुरे जियत । हियो बज्र भयो न्यान बिरहघाव बिहरतनहीं ॥ पढ़ि चिट्ठी यह हेत भयो माधवा विप्रको । यथा चोर को चेत भूल जात पनहीं मिलै ॥ भरिआये दोउ नैन गहे प्राइ ठोका लग्यो । उत्तर देत बनैन पैरवार बूड़तयथा ॥ दो. कहै सुवा माधवा से और कहाँ मैं काह। तुवहीतल शीतल करै यह विक्रम नरनाह ॥ नृपति भोर अस्नान करि नित आवत शिवधाम । तब तैं राजा को मिले होय सिद्ध सबकाम ॥ चौ० यहसुनविप्रशंभुमठआयो । करिदंडवतचरणशिरनायो। पुनि कवित्तशिवको असकीन्हों। होप्रभुतुब शरणागतलीन्हों। दंडक । कोऊन सहाय कलिकाल में दुखी को श्राय कासों क हौजायभारी बिरदकलेश को । देखे राजराय दया हीन सबठौर जाय गिनती कहांलौंपाय देशह विदेशको॥बोधा कबिध्यायर धाय २ परपाय भरमगवांय कीन्हों करम अंदेशको । काहूके न जैहों जैहाँ अादर न पैहों याते चरणगहिरहों में तो शरण महेशको॥