पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२३

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । अस्तुति ताकीअकथ कथाकी लखीविप्र अनुरागी॥ कंदलाजा नके प्रीतमानके एवार आय निहारयो। यहबाल सयानी बड़ी निधानी कहि या दोस्तपुकारयो ॥ सुनि माधवयोगी विरह वि. योगी गिरयो शूलधारिऐसे । कंदलै ध्यायके झमाखायके शर लागे मृगजैसे ॥ ललिविष हालको भयो बालको निश्चयमन में सोई । विरही पहिचान्यो निश्चयमान्यो दूजे और न होई ॥ दो. अहे कंदला २ कही माधवा टेरि । योसुनवालाकी विथा हरी विपतनहरि ॥ चौ० उठितिहिवालबांहगहिलीन्हों। निश्चयताहिवियोगीचीन्हों।। हिये लगाय अंकभरि भेटी । चाहे विथा विपकी मेटी ॥ कहै बिदग्धा सुन प्रिय मेरे । सब उजैन हेरी हिततेरे ॥ अब निजुकारण मोहिंसुनावो । जाते तुम निश्चय सुखपायो । दो. तासोंपनिमाधोकह्यो अपनेजीकोनेह । समझिविदग्धाबालने उत्तरदीन्होंयेह ।। चौ. तुमपरवीन पंडितसुजान । भूलेरतिवेश्या सोंठान ।। लोकहँसी परलोक नशाई । याते तुमको नैन निकाई ॥ तवमाधो ज्वाब असदीन्हा । जिनने नहीं इश्कमग लीन्हा । तिनको लगी बात वहफीकी । जाने कौन पराये जीकी । बरवै । घरी न घर ठहराती खीझत नाह । बंबुरातर मनलागि कटीली छांह ॥ दो• सुनसुभानता बाल पै पुराचीन सबहाल। भांति २ आशिकन के यथा कहे ततकाल ॥ छंद तोटक । वृत्तान्त सवै सुनि बाललयो । पुनिमाधवको यह ज्याबदयो । दिज धन्य तुहीजगमें जन है। गति एक अनन्य लग्योमन है। दो. नगिन वहे थल एक लगि दूजे रहे बटेन । कीच बीच जैसे गुरा खिंच के फिर उचटैन । चौ. चलिमाधौ विक्रम नृपपास । पूरण होय तुम्हारीआस ।। ।