पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । (माधोवचन) है वहसत्य आपजो बरणी । मोसों सुनो इश्ककी करणी। पीरपराई लखत न कोई। जाके लगी जानतहै सोई॥ कुंडलिया । घुनको जो घिउ प्याइये तो तुरतहिं मरजाय । वाको वही मिठासहै सूखी लकरि चबाय ॥ सूखीलकरि चबाय चकोरन बूझौयेही। तुमक्यों अंगरा भखत सुधाधर कखोसनेहीं।। कमलनसों यह बूझो देत का दिनकर उनको । वि प्याये म. रिजाय लकरिया भावत घुनको ॥शक बंधी विक्रम सुनो भूल जात धन धाम । लागगई तबलोककी लीक न आवत काम ॥ लीकन आवतकाम लाज गृह काज न सूझै। जगभयोयों उप हास जाति पांतिहि को बूझै । बोधा कबि गुण ज्ञान ध्यान भू लै सनबंधी । लगै इश्ककी चोट सुनो विक्रमशकबंधी । त्याग त तन मृगराज राग सुन दीपक संग पतंग । मछरी जल बिछुर तमरै यही प्रीतिकोअंग। यहीप्रीतिको अंगस्वाति चातक धन बरही। चुंबकलोहो मिले फेर न्यारो को करही ॥ बोधा कवि दृ ग लगै लोक अचरजसो लागत । हारिल सों बूझो यह लकरि या काहेन त्यागत ॥ दो कीन्हीं प्रीति कुरंगसों भरत भूप तपछड। 'मृगाभये नर देह तजि प्रेम प्रकृति भस मंड । दंडक । सफरी कुरङ्ग लोहो चुम्बक पतङ्ग भंगी हारिल पपीहा दिया बरही विकानेहैं । कमल कुमोद कोक ममरी घुनौ ताकीरा कमलन मायो कस्तूरी अंगजाने हैं ॥ पन्नग चकोर चूना हरदी परेवा मेघ चञ्चरीक चंदनओं चंदा चितआने हैं। क्षीरनीर सूती हंस चित्रके सुवालो देखि प्रेम रत्नाकरके बुढ़ाये बखाने हैं। सोयों माधौके बैन सुनि बोल्यो बिक्रम नृपति । तेरे लायक हैन माधौ प्रीति नटीन की। पूरब पुण्य सनेह मनुज भयो यहकालमें।