पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१३१

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा| १०३ जपतपकरों उसीके कारन । जौलगधरिहों देहहजारन ॥ दो० शंकर विष कूरमधराबाड़वउदधिनिहार। अंगीकृत बोधा सुजन तजनवदुसहविचार ।। (राजाबचन) दो० सुनुमाधौ करतूतिमें कमीकरौं मैं नाहिं । तारे मांगो स्वर्गके तो मैं पाऊं काहिं ।। (माधवाचन) दो० महाराज दै भांति के बचनकहत संसार। ते न्यारे २ कहाँ सत्य असत्य विचार ।। (सत्य बचन) स० । भान उदय उदयाचल ओरते पूरबको पुनिपांव धरैना। त्यों शिरनेतसती धरके घरके फिरबेकह चित्तधरैना ॥ ज्योगज दंतसुभायकह्यो कदलीतर दूसरिखेर फरैना । त्योंही जबान बड़े नरकी मुखसों निकसैवह फेरिफिरेना ।। (असत्य बचन) - दंडक । धूमधाम चामदाम बामबाजीकैसेआम फागुकैसेवाव रामनकोकलेवाहै । भानमतीसती जैसे सपनेकी रतीजैसे संन्या सीपतीजैसे पावकोपरेवाहै ॥बोधाकवि कपटकीप्रीति भीतरैनका कीचे दहतजैसे समनकी सेवा है ।। दो० दुजोदिन बीतोनहीं बीचबसी नहिंरात । शंकरमठकी बारताअवहीं बिसरीजात ॥ (राजाबचन) कहैनपति सुनुमाधवा यों है बचनविवेक । की लखिअपनी सामर्थ्यलों बड़ेनिबाहतटेक ।। कामकंदलानटीपर कामसेनकोप्यार। असोक कैसे पाइये विनाकिये हथियार। मांगे वै देहैं नहीं लरिबो उचित न होय । कहौ विप्र कैसे बने ये अवध्य लखिदोय ।।