पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१३२

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१०४ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। कुंडलिया। बाचालौं श्वासा भली सुनुविक्रम नरनाथ । भई भली कै होय पुनि बाचा श्वासा साथ ॥ बाचाश्वासा साथ के कविनएकन नीकी । श्वासा कबहुंक जायटेक छूटैनहिं जीकी। श्वासासार शरीरवचनलौ क्षितिपतिराचा । कहा जियेको स्वा- दजायतादिन गिरिखाचा॥ दो• सुन २ माधौके बचन भयो क्षितिपति उरतेहु । फौजदार सों यों कही क्यों न नगाड़ा देहु ।। इतिश्रीमाधवानलकामकन्दलाचरित्रभाषाविरहीसुभान सम्बादेउज्जैनखण्डेउनईसमोतरंगः १६ ॥ लोहचुम्बकनामइश्क अथप्रसंग ।। बीसमोतरंगप्रारंभः॥ भुलाबखाखरा यौवनीघोरकीन्हीं।मतेदिग्गजन जोरचिक्कार दीन्हीं। नगाड़े यथा मेघमालाधुकारे। तिन्हें चाहढादी शिखंडी पुकारें । बजैतूरही भूरही भेरिगाजें। मनोगाज चिल्लीहजारान राजें। वजेसाहनाई घनेढोलजंगी।गजैशाहके चाहमानो मतं- गी। बजैगुड़गुड़ी ढकबीनाझनाके। यथा बाटिका भूरिभंगीभ- नाके ॥ बजे नारसिंही चढ़यो जोरचित्ता। पढ़ें रावराना हजारों कवित्ता॥ छन्दसुमुखी। क्षत्रीसजे छत्तिसकौम । यमपैजेजनावें जौम ॥ धसकत धरापत शेश । रह्यो धूरिपूरिदिनेश ।। जकतशंकमा नदिगीश । करकति दिग्गजों की खीश। उछलत सिंधुबारिप्र. चण्ड । थर २ कँपतभारतखण्ड । छन्ददोधक । विक्रमकेदलकी बहुताई । सोकिमि जायकवित्त नगाई। जानत हैं जगसो छत्रधारी।दीपतसातहु दीपनिहारी॥ खोरिनखोरिखड़ी असवारी।मूरिंगरदनहिंजात सम्हारी।शेलबर छिन सों पुर बंध्यो। योंदलदीरघ विक्रमठंड्यो॥ दो० चैतपक्ष शुक्ल रोहिणी प्रथमयाम शनिवार ।