पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१३३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १०५ पाय सुभग तिथिपंचमी भयोपति असवार ।। छंदमोतीदाम । चल्यो दलदीरघ विक्रमसाज । उठैबड़ि मत्तम- तंगगराज । रैरणमारबढ़ा हियजोर कवितन मंडितभाटनशोर कपैजिमि भूमिचलै दलपात । लखेदिशिचार ध्वजाफहरात ॥ रिंग्योसिगरे दिनतापुरमांक । भईपुरबाहिर आवतसांझ । दो दिनअथयो डेरापरे क्षितिपति सोहोंदीन । माधौनल विनतीकरी भोजनकरौ प्रवीन । राजाबच सो. जौलों दिज हित भयोन तौलौं भोजननाकरौं । सत्याहार कौन थोड़े दिनके जियनको ॥ मास एकको काज कहै नृपतिसों माधवा। कैसे जीहौ राज तोलगपानी पानबिन ।। समझायोबहु भांति सबहीने महराजको। तबधरिनिज उरशांति फलाहार क्षितिपतिकरयो । छंदमोतीदाम । जग्यो नृप चाहि उदय रविकर । कह्यो तब कूध नकीवन टेर ॥ बजै घनसे प्रतिदाह निशान । खड़ोदलयो जन पाठ प्रमान ॥ सर्कत भूमि धरकतशेश। कर्कत शरडाढ़क लेश॥बरकत भरि भई असमाना परैलखि नाहिं दुरयो कतभान निशान लयो लखि लालियसाज । चल्यो धरि देह मनो ऋतु राज ।। रह्योदिनमेंवहरैनि प्रमान । हर्षतभयेचकही चकवान ।। दंडक । साजि चल्यो विक्रम समर्थ दलदाह दिग्गज तिनके दंतन दरेसे दीजियतु।पारवार वारके फुहारेसे बढ़त देखि तंकि- तदिगीशन के हियसीजियतुहैं ॥ बोधाकवि सारी बसुधा मेंौं धियारी चाहि कोकनद कोटिन वियोगी जियतुहें । एकमाधवा को दरद हरवे को चक्रवाकन को नाहक संतापलीजियतु हैं। स. बोलतझुंड नकीवन के सुन सो कुइलीन की कूकसुहार कैयो हजार खावव जनुकुंजित गनकी बहुताई ॥ 98