पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४०

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११२ बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। दंडक । जलथलज कीन्हें सुमन कटी डारशाश में कलंक कवार सरसाती हैं। योवन वतिन धौ लताहीके सुपासनमें ना. रिका निपुंसनके सुन्दर लखाती हैं । बोधा कवि सुजन बियोगी रोगी महाराज पंडित निधन धनवंत मतिमाती हैं। वारिनिाधे- बारछार गूढथलकीन्हेंबार यातेबाजीविधिकी सालीचलीजातीहैं। चौपस्योशोचसागरनरनायक। अब जगजीवननमोरेलायक। शोचत निजडेरा को आयो । हँसि माधौको पास बुलायो॥ चाहैतासु प्रतिज्ञा लीन्हीं। तुरत खवरिवनिता की दीन्हीं। जीवत या कामावति माहीं । माधौकाम कन्दलानाहीं ।। दो. मरीनारि यह श्रवण सुनि माधौ तनतजिदीन्ह । हाय कंदला २ कह कंदला प्रवीन । शंखनाद देवनकियो छाये व्योमविमान । इततन त्याग्यो माधवा उतकंदला सुजान । शिव विरंचि हरि निगमनित शोधतजाकी बाट । ता अखंड निजधाम के खुलेअनयासकपाट ॥ छंदतोटक । माधौतन त्यागकियो जवहीं । राजाअति चक्रित भयोतबहीं॥हौंनाहक दोजिय घातकियो। भारीअपराधविसाह लियो । मरिखो सलाह दूजी न बात। जगजियत सुयशसर्बसुन सात ॥ तब कह्यो नृपति मंत्रिन बुलाय । पर रच्योचिता चन्दन मँगाय ।। हौजरहुं विपके साथ भाज। तुम करौ सबैउज्जैनराज। तब कहमंत्री नायक प्रवीन। किहिहेत विप्रतनत्याग दीन॥तब कहें नृपति सुनिये सुजानाहोंकिये दुहुँनके प्रानहान॥ उतजाय कह्यो कंदलापाहँ। तुवमित्त मस्यो उज्जैनमाहुँ । यहबचनसुनत तनतज्योनार।कहिहाय मित्र माधौउचार ॥मैं अतिजरूर दिज पास आय । सबकही कथा तिहि अग्रगाय ॥ नियमरी सुनत माधौप्रवीन । कहिहाय मित्र तन त्यागदीन॥होंअमर करनआ यो विशेख । अव अमरभयो मुखमोर देख ॥ सुखमोर ध्याह देखो न कोय । इहिकाल चितावनि त्यारहोय ॥ इमिसुनत बचन नृप