पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । द्वितिय बूंद अमृत में लीन्हा। सोलै तेरे मख महँ दीन्हा ।। अव तू मतचिन्ता मनराखै । विक्रम झूठ बचन नहिं भावै ।। दो० चढ़धायो उज्जैनते माधोद्विजके काज । काल पकड़ ने खेतमें काम सैन महराज इतिश्रीमाधवानलकामदलाचरित्रभाषाविरहीसुभान सम्बादेयुद्धखंडेमाधौनलकामकंदलामूञ्छितजागनो नामइकईसमोतरङ्गः २१ ॥ इश्कपनाहाम।। बाईसवाँतरगप्रारम्भः दो० काम कंदला बालपै नृपति प्रतिज्ञा पाय । रसमय बोल्यो वचनकछु बाहँ तासु गलनाय ।। छंदद्रुषिला । तब कह्यो बनिता येह । सुननृपति धर्म सनेह ।। द्विज बंशके तुम दास । यहलोक २ प्रकास ॥ हविप्र बाल प्रवी न । तुमकौनयह रस लीन ॥ राजान की यह रीति । द्विज वंश पालन प्रीति॥ छंदचौपहिया । जौनेहजार भई पुरहूत के कंचन देहबिहारगई है। अंजनी कुंवारे जनो सुतको सिगरे जगसो उपहासभई है। बोधा पुराणन हूं सुनिये हमतौ वरणी नहिंबात नई है । विप्रव- धुके सनेह लखो अजहूं लौ छपा कर मांझ छई है ॥ चौतनृपकह्योकंदलापाहीं। तुमद्विजपतनी होतीकाहीं॥ गणिका दूजे नृपकी दासी । पुण्य जोखता सबकी भासी ॥ दान देय सोई पति प्यारो। यह पतिव्रत कहिये थारो ।। कहै कंदला सुन नर नायक । या ना तेरे कहबे लायक ॥ होतन धरनर और न जानो। एकमाधवा विप्र बखानो॥ नृपघर रही एकपखवारा। दरशन लौ स्वारथै विचारा॥ इच्छा वर माधौनलकीन्हा। देहदान दूजेनहिं दीन्हा दिवसएक राजामो पासा । आयो केलि करनकी आसा॥