पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ११९ दो० करमेरी छातीधयो अग्निपखो जनुजाय । महाराज तबहीं रह्योज्यों ठग भूरीखाय ॥ चौ० कहैबाल विक्रमनृप सेती। मेरीलेहु प्रतिज्ञा येती ॥ मेरोजीव चित्रकी देही। या देही में विप्रसनेही॥ अंगरा बालहाथ परलीन्हों। परच्यो यहराजा को दीन्हों। निजुडेरे जैये नरनाथ । देखिये जाय विप्रकोहाथ ॥ यहसुन भूपतिडेरे आयो। माधौ नलको पास बुलायो॥ दहिने कर त्रिय अँगरालीन्हों। बायोंहाथ विप्रको चीन्हों। दो० जान्यो हाथमें माधवा नृपति लख्यो निजनैन । सिफतइश्क दिरयावकी मुखते कहतवनन ॥ चौ० यहपरसंग विप्रपर गायो । सुन नृप सचिव समाज बुलायो हुकुम पाय मंत्रीसब भाये। तिनके नृप ये बचन सुनाये॥ कामसेन क्षितिपति परजैये । कारण मेरो उन्हें सुनैये ॥ हारण मंडित होतविहाने। देहें त्रिया कि युद्धहि ठाने । दो० नृपशासन सुन सचिव सत्र कीन्हह्मणामबनाय। कामसैन नृपपै चले विप्रपचौरी पाय॥ छ०प० तहँ अमरसिंह पंडित प्रवीन । कविकालिदास रस नौमलीन ॥शकर सुभान सिंधुर सुजान । बर रुचिर वृद्धितिन की बखान ॥ कविकोकधनन्तरवैद्य और । बैताल सचिव शिर गिनत मौर ॥ नृपकामसैन के द्वारजाय। पठयो प्रणाम राजहि- जनाय ॥ उज्जैन रायके सचिव जान । लीन्हें बुलाय नृपहेतु मान॥ हियसों लगाय भेटेसुप्रेम । नरनाह सहित सबबूझ क्षम।। दो० उचित २ सन्मानकर उचित २ बैठार । सिंहासन बैट्यो नृपति कामसैन तिहिवार ॥ स० चौरन मोर ढरेचहुंओर ते खोलतकेशर नीरफुहारे। मं- डित छत्र सिंहासनपैभुइ लोकमनौ रविदेवपधारे ॥ सूरसमाज लसें सुरसेकल कोकिल गानकरें गुणवारे । काममहीपकी दीप तऊपर एकसहस्र सतंकतवारे॥