पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४८

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१२० विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । चौ०कामसैन बूझी यहचाह । क्षेम युक्त विक्रमनरनाह ॥ चेमकथा चैतालसुनाई । तबनरेश ने यों फरमाई ।। कारण कहाँ कहांतुम आये । कहावत्रन नृपकह पठवाये ।। तब इहिओर वीरवैताला। कहनलग्यो माधोको हाला॥ दो मित्रकंदलाबामको विप्रमाधवा नाम । गयोत्रास महराजको देशछोड़ अरुग्राम ॥ भयो फिरादी सो गयो महाराजके पास । नृपको कौलकरायके कह्यो आपनो त्रास ॥ करी प्रतिज्ञा रायने सुनत विपके चैन। बिरहीको दुखटारकै राजकरौं उज्जैन ॥ पश्चिमकामावतीके पखो प्रायनरनाह । हमें पठायो आप कहपठई यहचाह ॥ देहि कंदलाबालको कैबांधकिरवान वचनसुनत कोपितभयो कामसैन भुवमान । ज्यों सप्रेमनवलाहलखि कामीउरभकुलात । त्योंहीं नृपप्रज्वलिभयो सुनत जोमकीबान ।। छन्द प०। यहबचन सुनतही जयोभूप ।बैठोसकोपढेकालरूप॥ द्विजदरदपायउज्जैनराय । नृपकामसैनपर चढ़योधाय ॥ अति- गर्व बढ्यो बिक्रमविशेख । क्षत्रीनानक्षितिमाहलेख ॥ पठयेब सीठअतिही उताल । तुमचलौलेन कंदलाबाल॥ लाज्योननेकु योहींचतात । इतनहीं दूसरोअन्नखात ॥ होंदेहं कंदलाबालतब्ब। जबब्रह्मसृष्टि मिटजायसब्ब ॥ तबकडो वीरबैतालयेह । किहिहेत करतनरनाहतेह ॥ दिजहेतदीजिये प्रानदान । यहराजनीतिस- मझौसुजान ॥ तबकह्यो फेरि पुनिकामसैन । तुमचलेलरनकी दानलैन।तुमविप्रवंशपालकभुवाल । है कितीवात कंदलाबाज।। राजावचन चौ० जोपैदानलेन नृपाये। तोकिहि हेतबसीठपठाये ॥ दलबललै उज्जैनकोजावै । विप्रभेषधरिके फिरआवै ॥