पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५

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कामसेन की सभा में जाय प्रणामकर अपने आने का कारण सुनाय तथाराजा विक्रमादित्य का संदेशा कह स्थित भये और माधवानल कामकंदला की प्रीतिमें ब्याकुलहो राजाके पासजा उनसे कोलकराय अपना आद्योपान्त वृत्तान्त सुनाय और राजा विक्रमादित्यको यहांतक बुलालानेका कारण बैतालने वर्णन किया जिसको सुनि नृप कामसेन क्रोधित होकर बोला कि हम कंदला को न देवेंगे परन्तु युद्ध ठानेंगे ऐसा राजा काप्रति उत्तर सुनिमंत्री सहित बैताल चले आये और राजा विक्रमादित्यको सभाका वृत्तान्त कहसुनाया यहसुनि राजा(विक्रमादित्य)प्रातः- काल उठसेनापति को बुलासैन्य सजने की आज्ञा देताभया नि. दान सब सैन्य सजवाय आपरथपर आरूढ़ होवहांसे कूबकर रंगभूमि में जहां कि कामसेन राजा का दलजोयुद्ध करने को उ- घतथा पहुंचा और दोनों दल के सन्मुख होनेपर युद्धकाप्रारंभ हुआ और ऐसाघोर युद्ध हुआ कि सहस्रों बीर नाशको प्रासहुए निदान अन्त में ऐसा चरित्र हुआ कि विक्रमादित्य के पास एक योधा रनजोर सिंहनामकबड़ाशूरवीर था और कामसेनके पासभी वैसही एकयोधा मेदामल्लनामकथा दोनोंने (रनजोरसिंह, मेढ़ा. मल्ल)मापुसमें ऐसी पैजबँची कि हम तुमदोनों में जो जीते उ. सीकानृप विजय पावै ऐसीपैज दोनोंने करि अपने २ राजाके पास अपनी २ बैंची पैजोंका वर्णन किया जिसको सुनिकाम- सेन ने यह प्रतिज्ञा पत्र लिखदिया किजो मेरायोधा मेदामल्ल रन में पराजय होवेगा तो मैं छत्र सहित कंदला देदेऊंगा और इ. सीप्रकार विक्रमादित्यने लिखदिया कि जो मेरायोधारनजोरसिंह रणमें पराजय होवेगा तोमैंभीक्षत्रसिंहासनदे उज्जैन नगरीको चलाजाऊंगा इसतरहके प्रतिज्ञापत्र दोनों बीरोंने आपुसमें बद- लकर युद्ध का ठान गना और ऐसा महाकराल युद्ध हुआ कि जिसका सम्पूर्ण वर्णन इस ग्रन्थ के अवलोकन करने से बिदित होवेगा अन्तमें रनज़ोर सिंहने मेदामल्लको परास्त करिआपराजा