पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५१

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १२३ क्षत्रिहीन पहुमीकरहुं । सुनकामसैन नरनाहतू जादिनखड्ग- होकरगहहुं॥ (राजावचन) दो० अहेभट्टमति सदृतू बोलतक्यों न विचार । कहैपकरि दरवारमें देहुपै करनहार ॥ (बैतालबचन) छप्पयाको पर्वत कर धरै कौन सुम्मेरु हिलावै । को पयोधनक जाय को केहरिचढ़धावै ॥ कौन हलाहल खाय कौन अहिपूं- छमरोरहि । कौनपवन करधरहि काल सन्मुख को जीतहि ॥ को चदैजाय धौरागिरहि कोपकरै यमजाल कहँ । स्वर्ग निसेनीदेह की कोपकरै बैतालकहँ ॥ (राजाबचन) छप्पय । अहेवीर वैताल प्रथम तू आयभिखारी।पुनआयो द्वैदूत कहा तेरी अधिकारी ॥ पंचन मारत कोय नीतियह भांति बखा- नत। हतौ न तोहिंतिहि हेत मोहिनिर्बल तू जानत॥ उठिजाव बेगि निजराज पै यहै ज्वाब ममदीजिये। सफजंग भोरहों करहुँ अाप त्यारी कीजिये ॥ दो० करिप्रणाम महराज को चल्यो बीरबैताल । इतै विक्रमादित्य पै सबै बखान्यो हाल ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाबिरहीसुभान सम्बादेयुद्धखंडेकामसैनवाचबिलासेनाम बाईसमो तरंगः २२ इश्कनौतबनाम ॥ तेइसवांतरंगप्रारंभः सो० प्रात उठोगल गाज कामसैन नरनाहउत । इतविक्रम महराज भये नगाड़े दुहूंदल ॥ छन्दरूपमाल । उतकाम सैन प्रचंडइत विक्रमदित्य सम- रस्थ । रविके उदयसंग्रामको धयोकृपानी हत्थ ॥ अति दीह