पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५८

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१३० विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । नीकेभूपकही दिजमाधौ । नृपतिकहें तुवदरशनसाधौ ॥ राजाउभय प्रेमयुतदेखे । माधोभाग्य सुफलकरिलेखे ।। दो० काम सैन करजोर कर विनती कीन्ही येह । कामावति चलि येनृपति विक्रम तजि के तेह ॥ चौ. कामसैन विक्रम नरनायक । माधौ औमंत्री जोलायक। चले सबै कामावति काहीं। बैठेतीन एक स्थ माहीं॥ घरी भीर कामावति पाये। अवधनाथ के दरशन पाये ॥ पूजा प्रभुकी बिक्रम कीन्ही । सहसगऊ विप्रन कहँ दीन्ही॥ पुनि नृपरवन बाग में आयो। हवा देख बहुतइ सुख पायो॥ पुरवासी सब देखन आये । तिन दरशन बिक्रम के पाये ॥ जो चलि निकटरायके आवै । नमित करत बीरा ते पावै॥ पुनि महीप महलन पगधारा । प्रथमहिं महल मयूर निहारा ॥ पुनि दरबार भूमि नृपआयो । कामसैन तब बिनय सुनायो । सिंहासन दोऊ नृप ऐसे । राजत दोऊ पुरंदर जैसे ॥ छंद पद्धरिका । नृपमहल देख अतिही सुवेश । दिलमस्त भ- यो विक्रम नरेश । अति चित्र सहित राजै दिवाल । पुनिगि- लम चांदनी लखि विशाल ॥ तबकही नृपति सुन कामसैन । सुन महाराज पालक उजैन ॥ इहिमहल रहत कंदला बाल । अतिरूपवंत गुणमय रसाल ॥ तुबहुक्मपाव बुलवायलेक् । उहि वेग माधवं सौंप देव ॥ सबभीड़भाड़ नृपटारदीन्ह। पुनि बालक- दलहि टेर लीन्ह । जब भेद सुन्योकंदला येह । तब अंग २ उ- मग्यो सनेह॥ दृग फरकि उठेवायें बिशख। पुनवांव लंकफरक्यो सुदेख ॥ यहसरस सुक्ख जाने न कोय। हिय लखित कुलाह- ल ताहिहोय ॥ उतफरकियो माधवा अंग । दुहुंओरप्रेम सरस्यो अनंग ।। तबसखिन कह्यो कंदलापाहिं । करलोशृंगार सब अंग माहि ॥ तिय कहत कहा साजों श्रृंगार। पिय मिलन माहँ छैहै अबार ।। उठिचलीवाल माधवापास । उमग्यो भनंदअति हिय हुलास ॥ पुरहूत आदि साहिबी सब्ब । तृणमान कंदला लखी