पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५९

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १३१ सब्ब । दृगदेख कंदलाविप्र काहिं। भयो अति हुलास हियतासु माहिं ॥ दुहुंओर दुहुँन विस्तारबाँह । दरबार बीचसकुचेनकाँह ।। दो दै डोरीके बीचतें दोनों बाहँ पसार । मिलन हेत दोनों लही ज्यों विरही निधिपार ।। चौ. मिलेसप्रेम हिये लगदोई । यहसुख जानत विरलौ कोई ।। माधौ दृगननीर भरआयो। तिय हिलकन को शोर मचायो । सखिन आय न्यारेतिहि कीने । दुर्बल अंगविरहके छीने ॥ द्विजके चरणन बाला लागी । मेरु समान प्रीति उरजागी॥ दोनों चल राजाढिग आये। निजुकरुणाके बचन सुनाये ।। अंजलि जोरदुहुँन ने लीन्ही । कामसैन की अस्तुति कीन्ही ॥ छंद गीतिका । चिरंजीवो कामसैन भुवाल गो द्विजपाल भु. बभरतारही। चिरंजीव बंकादीन निवाज राजसमाज श्रुत मग धारही॥ चिरंजीवो काम पुरीश सब नरईश करुणा कंदजू । तुवरक्षक रहै गिरीश गिरिजा जानकी रघुनन्दन ॥ चिरंजीव- हु विक्रम सैन नगर उज्जैन छत्र विराजही। चिरंजीवहु परदुः. खहरन कलिकरतार करन समाजही। चिरंजीवहु करुणा कर. न तू सकबंधक्षितिमंडल करै । जगअचल कीरति बिदित अवध भुवालके सम बिस्तरै ॥ दो. जो विक्रम माता मुखी जो जगतुम होतेन । तोया कलिमें प्रीति कर जीवतहम दोतेन ॥ सो० चूड़त विरहपयोध नौका नृपविक्रमभयो । दो जियराखे शोध धन्य २ उज्जैन पति ॥ चौ. दुवोनृपतिने योंमतकीन्हों। दिजको राजबनारसदीन्हों। हयगय शिविकारथ समुदाई । हाटक रजित हवेली पाई ।। प्रखैतीज माधो सितहोई । विरही भये संयोगी दोई ॥ प्राज्ञा दुहूंनृपन की पाई । निजघर कामकंदला आई ।। दो० नृपति विक्रमादित्य को कामसैन महराज। भांति २ आतिथि करी मिजमानी को साज ॥ .