पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १३५ कविबोधान प्रानके जानवेकोयहप्रेमको पंथजवाहिरहै । दिल. माहिरसोजो मिलोबिछुरोवा किसातैवह दिलमाहिरहै। दो बिरहीमन चौगानले इश्कमहल्लाझेल । अपने शिरको बढ़ाकर मनभावतोखेल ॥ प्रमानकाछंद । बिहालबालयोंभई । सनेहया दगादई । कुरी तिकोकहैखरी । नसेठजेठहूकरी ॥ नकाननेकुमानहीं । अलीन हीनजानहीं ॥ करीकहाभईकहा । विरंचिनिर्दईमहा ॥ वियोग नित्तसे। कियो । अपारदुःखहीदयो । कठोर कोकिला रै पपीहरा हियेहरै॥प्रचंडपवन ज्यों चले । लतादिवृक्षत्योंहले ॥ दंडक । सुनहे सुभान दीनमानकी निकाई अबलीजे कहा ग्रीषम कीतपन तनुताइये । फेर द्विज माधोको संदेशहूनपायो भारीनौरनवारे नौतेनंदसरसाइये । बोधाकवि संगकी सहेली कहें बार२ पूजाकी जेवर की बियोग विसराइये । पूजिये कहारी जोपैवरघर नाही तोकहौ कैसे बरसात हममनाइये ॥ बरवै । गावहुरी तुमगावहु तुमहीं चैन । हमहुन सुखविनमि- तवै तरसत नैन। चौ. सुनसुमुखीसुखभयो वहानीबिनमाधोसबजगदुखदानी।। भली निवाही जेठजिठाई। सो करनी कहि जात न गाई ॥ अवतो वर्षा ऋतु नियरानी । चाहत हमहिं दई अब जानी ॥ फिरना मिलीमाधवा काहीं। रहीयहै आशा मनमाहीं॥ सो• सुनसुभान यहरीति मिलविठुरै हियप्रीतमहि । सुनहियहोत सभीत ज्यों त्रिशंकु नृपकी कथा ॥ चौ० ज्यों २ जेठमासऋतुआई। जीवतरही प्रीतमहिंछाई ।। सजलघटादिशि पूरखदेख । कालसरूप बियोगनलेख। सुनसुभान लीलावतिनारी । यामाधो २ सरकारी ॥ सुमुखिय ध्यायगई गिरऐसे । बेधियवधिक करंगिनिजेंसे ॥ सकारीघटादिशि दक्षिण देखिभयोरी हितूहियरो जरिकारो। ताहीघरी कहिहायवहै गिरगै पै लहिप्रेमतमारो॥केतेनआयल.