पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६७

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चिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १३९ सो. सखीदुसह यह पीर मेरोहिय खटकत रहत । त्यागन देह शरीर इहि दुख बिरही माधवा ॥ (भादों) त्रोटकछंद । झकझोरत पवन प्रचंड चले । बिरही द्रुममूलस- मेत हलै ॥ चहरेघन घोर घटा लहरै।नवपल्लवलोबनिता थहरै ।। निशि बासर भेद कळू न रह्यो । चकहा चकहीनबियोग दयो। बिरहीगनसो बिरहीय जरै। जुगनूगन जोर परै सुपरै ॥ छंदभुजंगी। मघा मेघमातंगसे जोर छाये । महा घोर संसार मेंजोर छाये ॥ महामेघ मालान के घोर भारी । कहसिंह चि. कारथहरात नारी ॥ कहूं बजकौघोर पब्बीचिहारें । कहूंमोर वा शोर के मोहिं मारें। घनभारदीमेष झिल्ली कलोलें।कहूंचंचला- न के चित्त डोलें ॥ कहूं तान हिंडोर कीजोइ गावै । हियेलाग पीके घनैरंग छावै ।। सखीतेस बैबेर मेरेपरेरी । नहीं होत शां- ती हिये ते करेरी॥ सो० पाली हती मयूर आली हों चित चाहि के। सौतभई अब कूर बिरह विवश पावस निशा॥ दंडक । आफैजाम पवन प्रचंड झकोरत तैसीमेह झरनाकी मैडी सरिता तलान की। तैसी ये कलापी मारकर खाकला. पैतैसी झिल्लिनकी कोरकारीरजनीकलानकी।।बिरहीरही बखाने तैसी विरह हिय में बाढ़ी विरहमजेज पंचवान के झलानकी। प्रीतम सुजान प्यारी कैसे केस मारैभारी घनघहरान छहरान चपलानकी॥ सो० रे रेस्वातिक कूर अवधवाल जानत जगत । भावन हमरो दूर सूने मतसकती करै ।। स० प्यारो हमारो प्रवासी भयो तबसे सहिये बिरहानल तापन। येतेपैपावसकी जानिशा हियरो हरेसुन केकीकलापन ॥ चातक याते करौं बिनती कवि काम क्षमा अपनी जा अलापन । तें- पने पियको सुमिरै मरे हमतेरीजुवान के दापन ॥