पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७१

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। (पूसमास) लाग्यो पुसशीत सरसानो। बनिता फिर निजु हालबखानो । निशि दिन शीतल हैं नरनारी । तूलनतपी प्रीतमहप्यारी ॥ तिनकोऋतुकोगुणसमलागताजिनके हियलगके पियजागत॥ जिनके गहन प्रीतमप्यारो। तिनहिं ज्वाल सम लगतहि मारो।। होंहि विवाह गीत तिय गावहिं । आधीरातबरात जिमावहिं॥ मड़वातर बरात छबिछाई । बजै दांत जिमि बजतबधाई ॥ परस्यो भातन आगे खाहीं । लूघर २ सब चिचयाहीं॥ (माहमास) अबसुनसखी माघइत आयो । सबरेजगतमोदमदछायो॥ प्रथममकर अस्नान दान नित। फिर बसंत भागमप्रवीनचित । कहुंकहुं आमन मौर निहारै । कहुँ२ कोकिल बचन उचारे । हरितवाल जोबन हरियानो । पागम ऋतु बसंत को जानो जतधमार नारदी गावै । रुचिर हारशृंगार बनावै ॥ ऊंचे महल झरोखन झांकें । जिनकी लगी जिन्हों से आंखें ॥ (फाल्गुनमास) अब सुनसखीफागनियरानी। यहफागुनसबजगसुखदानी ॥ चढ़ी चौखटा नार नवेली। निशिदिन जे प्रीतम सँग केली॥ समगीसमशीतलताई । संयोगिन कहँ मौजवनाई ॥ ऊपर ललित चदेवा साजै। नीचे गिलम दुलीचा राजै॥ ताऊपर परयंक बिछायो। तिहिपर मदन युद्ध सरसायो । सनै सुगंध न लज्जात्यागे। लपटें छुटेजुटे उठभागे॥ एकनार अागनके माहीं। गलवाहीं बैठी बहु अाहीं॥ नाना रुचिर मनोहरा गावै । द्वारेकढ़त लट्ठलै धावै ॥ बरिया ई कर बासन मारै । बसनछीन कहि घनी तुकारे ॥ बंधु बाप की आनन राखें । मदमाती अबला सब भाखें ॥ बीण मृदंग झांझझनकावें । नाच गाय सबलोग हँसावें ।। ये के राज समाजनमाहीं। उड़त अवीर रंग सरसाहीं ॥