पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७२

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१४४ बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। केशर नीर अर्गजा बरषे । सनै गुलाल नारि नर हरषे॥ ए के फूंक होलिका आवें । भांति २ के स्वांग बनावें ।। गधा चढ़े जारशिर बांधें । हाड़नकी माला आरा धैं । धूर उड़ावतगावत सोई । अनहोनी जो जग में होई ॥ स. गोबरकीच सनैये बनै अरुकीन्हे कुसुंभेशरावके नस्सा। हाथ में लट्ठल विथिरी उन्माती सीनारिकिये रस मस्सा ॥ घूर- न पैलपटेझपटै सनै इल्लतगावै खसर फस्सा । को बरनै जोल- रब्योइन आंखन फागुन मासको धूमरथस्सा॥ (चैतमास) चौ० सुनुसमुखी बसंत ऋतु आई। माधो नलकी खबर नपाई ॥ कूकन लागी कोयल पापिन । विरहिन मरनलगी संतापिन ॥ स. कोकिलयातेरो कुठार सोबान लगै पर कौन को धीरजरहै। याते मैं तोसों करौं बिनती कविरोधातुहीं फिरके पछितैहै ।। स्वारथ औ परमारथको फल तेरेकलन हाथ न ऐहै। गैरकुठौर रियोगिन के कई दूबरी देहनमें लग है। बरवै ।कूकन मार कोइलिया करिश्तेह । लगिजात है विरहिन के दूवरी देह ॥ छंदपद्धारिका । लखिकंज खंज प्रफुल्लितबिशाल । किंशुक समाज ज्यों ज्वाल माल ॥ लम्बिसुभट आम शिर धरेमौर। ऋतुराज अाज शिरताज तौर ।। बनवागसबै पति झार देखि । यहचै तमास कारण विशेखि ॥ सबफूल युक्त द्रुमबोल देखि । बेदन समान बिरही न लेखि॥जलअमल चलतत्रिविधा समरी। उरतीन तापसम लगतबीर । दिशि चारैचत सन्या निहार । कहि हाय मित्र भुइँपरी नारि ॥ स० कााकला पुकारत दरोसो दयो इतै देखपलाश समाज घटालौ । बाहै लखोतो धनै भृमरानकी श्यामता घोरलखातघुटा लैा ॥बठौरन बोधा बिना हरहै अमलान के मौर बितान घटालौ येरी संत की फेरी पखो मन माखो फिरै चौगानवटालौ ।।