पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७८

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१५० बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । चौ. नजरानी सौंपीनरनायक । फिरविनतीकीन्हींजोलायक ॥ भरतखंड मंडन क्षतधारी। और भूपसव प्रजातुम्हारी ॥ बड़े भाग प्रभु दरशन दीन्हों । घर बैठे सनाथ मोहिं कीन्हों॥ इतनी सुन विक्रम नरनाथा । गजरथ नजर कीन्हधर हाथा ।। दव्य अनेक सों टीकाकीन्हा। प्रीति सहित वीरापुनि दीन्हा॥ विदा भयो नृपनगरी काहीं। कामसैन भेट्यो मगमाहीं॥ रीति बिरादर आदर जोई। दुहूंओर दोउ राजन होई ॥ फिरगोबिन्द चन्द्र नरनायक । आयो पुहुपावति सुखदायक ।। नगरी मांझ नकीब फिरायो । मोदीऔर दिवान बुलायो । सीधा लेय तुम्हारे कोई । नृप विक्रम के दल में जोई।। तासों दाम द्रव्य नहिलेने। चाहै जिन्स तौल सो देने ॥ फिर नरेश डेरन में आयो। रघूदत्त को पास बुलायो । तासों कही कथा समुझाई । वरष एक में जो हो आई ॥ इतिमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाबिरहीसुभानसम्बादे श्रृंगारखंडेउन्तीसवांतरङ्गः २९॥ तीसवांतरंगप्रारम्भः चौ० विक्रम कही माधवा काहीं । मनचिन्ता कछु कीजैनाहीं।। जोजातीय माधोनल केरा । सो कुल पूज्य मोर सौ बेरा॥ जो कदापि यहकाज न कीजै । तो विरोध को बीरा लीजै ।। चलो नबरिये परघर आई । नाहक मरजादा पुनि जाई । यहसुन जवरघुदत्त ने लीन्हों। ज्यावसुदेश नृपतिकहँ दीन्हों। जोकारज उत्तमप्रभु जानौ । करौ वही जो मेरेमन मानौ ।। प्राण नाथ ज्योतिषी बुलायो। ताही क्षण तासों फरमायो॥ सगुन सुमंगल मूल विचारी । रचिसुमुहूरतसब सुखकारी ॥ सचिव ज्योतिषी औ पुरवासी।पंडित बैरागी सन्यासी॥ पूज्य २ पूरुषऔ नारी। आये सब तहँ तेही बारी॥ अजिर लिपायचौक शुभसाजा । मध्यदेव गणनाथ विराजा॥