पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा दक्षिण दिशि परभावती नगरी रेखातीर । रुक्मराय भूपतितहाँ नक्रपानसधीर ॥ धनको गुणको रूपको दक्षिण कहिअतिधाम । होतजमाने आयके कल्पलतासी बाम ।। रतिनिजमति उनमानिकै गवनतुलाबिनु कीन्ह । रूकक्मरायनिजघरिनउरमायसेरोलीन्ह ॥ कृष्णपक्ष परमायउष मृगशिरनिशाविशेश । जन्मकंदलाबालको धामराजकेदेश ।। ताकीलग्नविचारके कहयोज्योतिषीएह । महाराजयहकन्यकाउपपतिकराहिसनेह ।। छंदपद्धरिका। अतिसांगीतपरकरहिनीत । करवीणसाजगा बै अभीत ॥ मिलनटिनघटिनभटके अनेक । लहिनटाबटामेल नसुवेक ॥ परपुरुषप्रगटराखैरिझाय । सबछेलवृत्तजानउपाय ।। नरनाथसुनैइमविप्रबैन । अतिभोउदासमतिमोनचैन ॥ यहसु- ताकटहरा बीचनाय । नवदाधारदीन्हीवहाय ॥ द्वैपहरंगहरति- हिभयोबौर । इकनयअग्रतटलग्योठौर।। दोवातटउत्तर दिशाहीरा पुरसोनाम । ग्रामविषगणिकाबसैनव यौवनगुणग्राम ॥ प्रथम कुनामगूजरतहाँगणिकनकोगुरुदेव । सोप्रभातरेवा पुरीकरै शंभुकीसेव ।। तटनिहारकेकटहरानिकटगयो सोआय । लघुरवसुनिगुनिकेदयाकन्यालई उठाय ।। जातगूजरीऊजरीप्रभुदाताकोनाउ । तिहिपालीहियतकरसुतासुताकेभाउ ॥ चौ०। वर्ष पांचमें कन्याजवहीं । लग्यो पढ़ावननायक तवहीं । सुर गतितालसाज बजवावै । रागरागिनी भेद पढ़ावै ॥ तिवरी तांड वनाच नचावै । एकौघ रीक्षमानहिं पावै ।। दो। मजलिसलखिरीझोनृपति दीन्होंदान अपूर।