पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/५१

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विरहवाशिमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। पुनि प्रीतिरीति बोधा सुकविप्रगटकरत जेमंदमति । कीजै इकंत येमंत्र सबभये प्रगट उपजत विपति॥ सो०। माधव बचन सभीत सुनविलखी लीलावती। तेरे विकरे मीत मोंको अब मरखो उचित ।। में तोको दृढ़जान मनसों अंतर धन दियो। अंतरकियोनिदान गोपिनको गिरिधरयथा। स। लोककीलाजको शोचप्रलोकको वारियेप्रीतिके ऊपरदोई। गांवको गेहको देहको नातौ सो नेहपै हातो करै पुनि सोई॥ बोधा सो प्रीति मुबाह करै घर ऊपर जाके नहीं शिर होई । लोकको मीत धरा तजो मीत तो प्रीतिके पेड़े पड़ोजिनकोई॥ दो । बनत निबाहें जगत में बोल केलकी लाज॥ बोलगये सुनिये सुजन जियत रहो केहिकाज। सो । लीलावति के बैन सुनिमाधो चुपहोरहयो। उगलत बात बनैन सांप छडूंदरकी कथा ॥ पुनिप्यारीतन चाह बिलखतदे ऊतरदियो। तही सकत निवाह कैनिबाह करतारकर ।। विठुरो कहिहे कौन दोचित जब एकत्र हैं। जाहिर जगमें होन आशिककी बेवाकिफी॥ दंडक । चौखया नवेली जहां पौनको नगौन ऐसो और मनभा- वती सोहेतके निवाहिये। चाहिये मिलाप बिसराइये न ऐको बेर मिलिवेको कोटि २ बातें अवगाहिये बोधाकवि आपने उपाय में न कमी कीजे दुसतुवरे लनकी दुष्टपै न चाहिये । समयपाय बन जायकीजैसो उपाय आली दूसरोनजाने तो इश्कसराहिये। सो०। हौआवत उपहास लोभन आवत जीवको । हाइचाम अरु मास बारों तेरी प्रीतिपर ।। घाटबाट सुनुमित्र मिलिबोनित चितचाहकर। प्रीति निरंतर वृत्त यतन जाम राखें रहत ॥ दो० । सुनहु नृपति लीलावती गई आपने गेह ।