पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/५४

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२६ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । असम प्रलाप सुभावै ॥ कवि कहहिं दसादस माघसर बात ग- मन बरणनकहाँ । विप्रजी अवस्था तादिन दशवर्ष विरह जा- दिन कोपत महां॥ (माधोअचनदशाअवस्था) छदसुमखी । जबते तजो बनितापास । तबते चित्त विन उदास ॥ विधिपै चलत न कोई उपाव । है जिहिहन्यो बिरहा- घाव ॥ कलन हिंपरत निशिहू भोर । बेशक. इश्कको भयो जोर । करगहि बीण यहचितचाह । कैसेलहैं चित्तमजाह ॥ यह रुचिभई उरमें आय । अब यह नगरदेखीजाय ॥ जाके बीच मेरो मित्र । ताके. बसत निशि दिन चित्त ॥ यों अभिलाष वीत्योजान । अवगुण कहतकथन बखान ॥ तरसत नैन ये मेरे । बिनादीदार पियकरे ॥ हितूके नैनहैं जैसे । नहींवराम में तैसे ॥ सुमिरनकी कहीयह रीति। हियघटकी कठिनकी प्रीति ॥ धोती श्वेतछूटेबार । औपुनि आइलसत लिलार॥अंजनअधर नैनतमोल । दिलवरज्यो कहोमृदुबोल ॥ चोली कसतउकसत बार । सोछवि बसीचित्तमँझार ॥ है उद्योगकी यह रीति । पानी पानिसों नहिं प्रीति । गली हेरत दिवानेकी। गई सुध भूलखाने की । इसी मजकूर है उनमाद । जोकीजै सहीनस म्बाद ॥ बिछुरनतेरी अनेरीयार। दिलकोभयोदरद अपार ॥ बू- झौब्याधि को यहअंग । पीराहरा फीकारंग॥ तेरेदरश बिन यह बाल । मेरोभया ऐसाहाल ॥ कधी दिलदार जो आवै। अजब रँगसुरंग सरसावै ॥ चिन्ता तेरीयेसाई । कभीतू हेतमोताई ॥त- रनी निकट चितमिल वाम । हिलमिलकिये बहुत विश्राम ॥ तो लोतरसताहीला। इलाकिम राखिये जीला ॥ जड़होरहे जड़ता सोय। जैसा चित्रपक्षीहोय॥यारनयों कोपरलाप । वे अबकूपहि यकछुदाप ॥ हसीनहीं वरणतकोय । निरस निधनजानवसोय ॥ (अथप्रलाप के उदाहरण) कछपरी प्रापत दिज चीती । वहैप्रलाप अवस्था बीती ॥ । ।